लोक प्रशासन का क्या अर्थ है इसका दायरा (क्षेत्र) और महत्व
अत: लोक प्रशासन में लोक ”सरकार” के अर्थ में ध्वनित होता है । जबकि अकेला ”लोक” शब्द मात्र ”जनता” का अर्थ रखता है ।
व्हाइट के शब्दों में, “लोक प्रशासन में “वे गतिविधियाँ आती हैं जिनका प्रयोजन सार्वजनिक नीति को पूरा करना अथवा क्रियान्वित करना होता है।”
वुडरो विल्सन के अनुसार, “लोकप्रशासन विधि अथवा कानून को विस्तृत एवं क्रमबद्ध रूप में क्रियान्वित करने का काम है। कानून को क्रियान्वित करने की प्रत्येक क्रिया प्रशासकीय क्रिया है।”
डिमॉक ने बताया है कि “प्रशासन का संबंध सरकार के “क्या” और “कैसे” से है। “क्या” से अभिप्राय विषय में निहित ज्ञान से है, अर्थात् वह विशिष्ट ज्ञान, जो किसी भी प्रशासकीय क्षेत्र में प्रशासक को अपना कार्य करनेकी क्षमता प्रदान करता हो। “कैसे” से अभिप्राय प्रबन्ध करनेकी उस कला एवं सिद्धान्तों से है, जिसके अनुसार, सामूहिक योजनाओं को सफलता की ओर ले जाया जाता है।”
हार्वे वाकर ने कहा कि “कानून को क्रियात्मक रूप प्रदान करने के लिये सरकार जो कार्य करती है, वही प्रशासन है।”
विलोबी के मतानुसार, “प्रशासन का कार्यवास्तव में सरकार के व्यवस्थापिका अंग द्वारा घोषित और न्यायपालिका द्वारा निर्मित कानून को प्रशासित करने से सम्बद्ध है।”
लोक प्रशासन का दायरा (क्षेत्र)
लोक प्रशासन के उद्देश्यों को लेकर दो उपागम हैं- POSDCORB उपागम और विषय-वस्तु उपागम ।
POSDCORB दृष्टिकोण:
लोक प्रशासन के क्षेत्र से संबंधित इस उपागम की वकालत लूथर गुलिक ने की थी । वे मानते थे कि प्रशासन सात तत्वों से बनता है । उन्होंने इन तत्वों को इस प्रथमाक्षरी नाम ‘POSDCORB’ में जोड़ा है, जिसका प्रत्येक वर्ण प्रशासन के एक तत्व को दर्शाता है ।
लूथर गुलिक प्रशासन के इन सात तत्वों (या मुख्य कार्यपालिका के कार्यों) की निम्न रूप से व्याख्या करते हैं:
P- Planning (योजना)- अर्थात् एक व्यापक ढाँचे में आवश्यक कामों को करना और उपक्रम के तय लक्ष्य को पूरा करने के लिए इन कामों को करने की पद्धति तैयार करना ।
O- Organising (संगठित करना)- अर्थात प्राधिकार के औपचारिक ढाँचे की स्थापना करना, जिसके द्वारा कार्य उपविभाजनों को तय लक्ष्य के लिए व्यवस्थित, परिभाषित और समन्वित किया जाता है ।
S- Staffing (कर्मचारियों को रखना)- अर्थात भर्ती करने, कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और काम करने की बेहतर स्थितियाँ बनाए रखने का संपूर्ण कार्मिक कार्य ।
D- Directing (निर्देशित करना)- अर्थात् निर्णय लेने और उन निर्णयों को विशिष्ट एवं सामान्य आदेशों और निर्देशों में समायोजित करने का निरंतर कार्य और उपक्रम के नेता की भूमिका का निर्वाह करना ।
CO-Coordinating (तालमेल करना)- यह कार्य के विभिन्न अंगों का आपस में संबंध स्थापित करने का बेहद अहम काम है ।
R- Reporting (सूचना देना)- अर्थात् उन लोगों को सूचित रखना जिनके प्रति कार्यपालिका चल रहे कार्यों को लेकर जवाबदेह है । इसमें रिकॉर्डों, शोध और जाँच द्वारा स्वयं और अपने अंतर्गत काम करने वालों को सूचित रखना शामिल है ।
B- Budgeting (बजट बनाना)- वह सब कुछ जो वित्तीय नियोजन, हिसाब रखने और नियंत्रण रखने के रूप में बजट बनाने के साथ होता है ।
विषय वस्तु दृष्टिकोण:
हालांकि POSDCORB उपागम अपने वर्तमान रूप में काफी लंबे समय तक स्वीकार्य बना रहा, लेकिन फिर समय बीतने के साथ इस उपागम के विरुद्ध प्रतिक्रिया हुई ।
फिर इस बात का ज्ञान हुआ कि POSDCORB गतिविधियाँ या तकनीकें संपूर्ण लोक प्रशासन तो दूर इसका कोई महत्त्वपूर्ण भाग भी नहीं हो सकतीं । यह उपागम वकालत करता है कि प्रशासन की समस्याएँ सभी एजेंसियों में समान होती हैं चाहे उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों की विशिष्ट प्रकृति कुछ भी हो । इस तरह, यह इस तथ्य को अनदेखा करता है कि अलग-अलग एजेंसियों को अलग-अलग समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।
इसके अलावा, POSDCORB सिर्फ प्रशासन के उपकरणों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि वास्तविक प्रशासन एक अलग ही चीज है । प्रशासन का वास्तविक मर्म लोगों को दी जाने वाली विभिन्न सेवाओं से बनता है जैसे- रक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा आदि ।
इन सेवाओं की अपनी विशिष्टीकृत तकनीकें होती हैं जो सामान्य POSDCORB तकनीक में नहीं होतीं । दूसरे शब्दों में, हर प्रशासनिक एजेंसी का, उसकी विषय वस्तु के कारण अपना एक ‘स्थानीय’ POSDCORB होता है । इसके अतिरिक्त, गुलिक की सामान्य POSDCORB तकनीकें भी प्रशासन की विषय वस्तु से प्रभावित होती हैं ।
इस प्रकार POSDCORB उपागम ‘तकनीक निर्देशित’ है बजाय ‘विषय निर्देशित’ होने के । यह लोक प्रशासन के बुनियादी तत्व यानी ‘विषय वस्तु के ज्ञान’ की उपेक्षा करता है । इस तरह लोक प्रशासन के उद्देश्य के ‘विषय वस्तु उपागम’ का उदय हुआ ।
यह उपागम सेवाओं और प्रशासनिक एजेंसी के कार्यों पर जोर देता है । यह दलील देता है कि एक एजेंसी की सारभूत समस्याएँ उसकी विषय सामग्री पर निर्भर करती हैं (जैसे सेवाएँ और काम) जिससे उसका सरोकार होता है ।
इसलिए, लोक प्रशासन को महज तकनीकों का अध्ययन नहीं करना चाहिए बल्कि प्रशासन के सारभूत सरोकारों का अध्ययन भी करना चाहिए । लेकिन POSDCORB उपागम और विषय वस्तु उपागम एक-दूसरे का विरोध नहीं करते, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं । वे साथ मिलकर लोक प्रशासन के अध्ययन के उचित विस्तार क्षेत्र का निर्माण करते हैं ।
इसीलिए लेविस मेरियम ने सही ही कहा है- ”लोक प्रशासन एक दोधारी औजार है, जैसे कैंची की दो धारें । एक धार POSDCORB द्वारा समेटे जाने वाले क्षेत्रों का ज्ञान हो सकती है और दूसरी धार उस विषय वस्तु का ज्ञान हो सकती है जिनमें ये तकनीकें प्रयोग की जाती हैं । एक प्रभावी औजार बनाने के लिए इन दोनों ही धारों को तीक्ष्ण होना चाहिए ।”
शिक्षा की एक शाखा के रुप में लोक प्रशासन की पाँच शाखाएँ हैं:
(i) सांगठनिक सिद्धांत और व्यवहार,
(ii) लोक कर्मचारी प्रशासन,
(iii) लोक वित्त प्रशासन,
(iv) तुलनात्मक एवं विकास प्रशासन,
(v) लोक नीति विश्लेषण ।
लोक प्रशासन का महत्व :-
लोक प्रशासन आधुनिक राज्य का दर्पण है। यह मानव जीवन के बहुमुखी विकास की दिशा व दशा दोनों मे ही लोक प्रशासन का अमूल्य योगदान है। लोक प्रशासन का उद्देश्य जनहित है शासन के विशाल संगठनात्मक ढांचे मे लोक प्रशासन का वही महत्व है
प्रोफेसर डोन्हम के अनुसार, "यदि हमारी सभ्यता का विनाश, होता है या असफल रहती है तो उसका मुख्य कारण प्रशासन की असफलता होगी।"
लोक प्रशासन पर किसी शासन की सफलता और विफलता निर्भर करती है। लोक प्रशासन मे सरकार की संरचना व कार्यों के बारे मे एक सही, व्यवस्थित और वैज्ञानिक ज्ञान निर्मित करने की क्षमता होती है।
लोक प्रशासन के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता हैं--
1. राज्य का व्यवहारिक व विशिष्ट भाग
शासन अर्थात् सरकार के कार्यों तथा दायित्वों को मूर्तरूप प्रदान करने में लोक प्रशासन की एक अनिवार्य तथा विशिष्ट आवश्यकता है। क्योंकि आधुनिक युग में राज्य को एक बुराई के रूप में नहीं बल्कि मानव कल्याण तथा विकास के लिए एक अनिवार्यता रूप में देखा जाता है।
2. जन कल्याण का माध्यम
वर्तमान समाजों की अधिसंख्य मानवीय आवश्यकताएँ राज्य के अभिकर्ता अर्थात् लोक प्रशासन द्वारा पूरी की जाती है। चिकित्सा स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, जन संचार, परिवहन, ऊर्जा, सामाजिक सुरक्षा, कृषि उद्योग, कुटीर उद्योग, पशुपालन, सिंचाई डाक तथा आवास इत्यादि समस्त मूलभूत मानवीय सामाजिक सेवाओं का संचालन प्रशासन के माध्यम से ही संभव है।
3. रक्षा, अखण्डता तथा शांति व्यवस्था के लिए
कुशल प्रशासन, सरकार का एकमात्र सशक्त सहारा है। इसकी अनुपस्थिति में राज्य क्षत-विक्षत हो जाएगा। न्याय, पुलिस, सशस्त्र बल हथियार निर्माण, अन्तरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, बहुमूल्य खनिज, वैदेशिक सम्बन्ध तथा गुप्तचर इत्यादि गतिविधियों ऐसी हैं जो किसी भी राष्ट्र की बाहरी एवं भीतरी सुरक्षा को स्पष्ट तथा प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। ऐसी गतिविधियाँ या विषय जानबूझकर लोक प्रशासन के अधीन रखे जाते हैं।
4. लोकतंत्र का वाहक एवं रक्षक
आम व्यक्ति तक शासकीय कार्यों की सूचना पहुँचाना नागरिक तथा मानव अधिकारों को क्रियान्विति करना, निष्पक्ष चुनाव करवाना, जन शिकायतों का निस्तारण करना, राजनीतिक चेतना में वृद्धि करना तथा विकास कार्यों में जन सहभागिता सुनिश्चित कराने के क्रम में लोक प्रशासन की भूमिका सर्वविदित है।
5. सामाजिक परिवर्तन का माध्यम
आधुनिक समाजों विशेषतः विकासशील समाजों की परम्परागत जीवन शैली, अंधविश्वास, रूढ़ियों तथा कुरीतियों में सुनियोजित परिवर्तन लाना एक सामाजिक आवश्यकता है। सुनियोजित सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षा राजनीतिक चेतना, आर्थिक विकास, संविधान, कानून, मीडिया, दबाव समूह तथा स्वयंसेवी संगठनो सहित प्रशासन भी एक यंत्र माना जाता है।
6. सभ्यता, संस्कृति तथा कला का संरक्षक
यद्यपि आदिकाल से ही कला एवं संस्कृति को राजाओं का संरक्षण मिलता रहा है तथापि वर्तमान भौतिक युग में जहाँ सांस्कृतिक परिवर्तन की दर अत्यधिक है, राज्य के दायित्व पूर्व की तुलना में कहीं अधिक एवं गम्भीर हो गए हैं। सांस्कृतिक अतिक्रमण, आक्रमण तथा पतन की ओर अग्रसर गौरवशाली मूल्यों के संरक्षण में निस्संदेह लोक प्रशासन ही सशक्त भूमिका निर्वाहित कर सकता है।
7. विकास प्रशासन का पर्याय
समाजवादी शासन व्यवस्थाओं में सम्पूर्ण विकास प्रशासन के प्रयासों पर निर्भर करता है, वही पूँजीवादी देशों में भी विकास की मूलभूत नीतियाँ, लोक प्रशासन ही तैयार करता है। विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लोक प्रशासन के कार्मिकों तथा विशेषज्ञों द्वारा अनेक प्रकार की लोक नीतियाँ निर्मित तथा क्रियान्वित की जाती हैं।
8. विधि एवं न्याय
आधुनिक राज्यों में मुख्यतः विधि का शासन प्रवर्तित है, अर्थात् कानून सर्वोपरि है। कानून या विधि से बढ़कर कोई नहीं है। लोक प्रशासन का यह कर्तव्य है कि वह संविधान, कानूनों, नियमों नीतियों तथा निर्धारित मापदण्डों के अनुसार भेद-भावरहित ढंग से समस्त राजकीय क्रियाएँ संचालित करवाये।
9. औद्योगिक एवं आर्थिक विकास
किसी भी राष्ट्र के सम्मुख प्रमुख चुनौती वित्तीय संसाधनों में वृद्धि तथा जनकल्याण की ही होती है। राष्ट्र के समस्त प्रकार के संसाधनों के सदुपयोग को सुनिश्चित करने व्यापार संतुलन को बनाए रखने, राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने जीवन स्तर को उच्च बनाने विश्व के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाणिज्यिक एवं व्यापारिक गतिविधियाँ नियंत्रित करने तथा विधि ग्राहय् मुद्रा संचालन के क्रम में लोक प्रशासन की उपादेयता स्वयंसिद्ध है।
10. आजीविका का माध्यम
राज्य सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता है तथा लोक प्रशासन केवल जनकल्याण तथा विकास के कार्यक्रम ही संचालित नहीं करता है। बल्कि विशाल जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध कराने का भी श्रेष्ठ स्थल है। लोक प्रशासन में कार्य करने वाले लोक सेवकों की प्रत्येक युग में सदैव ही एक विशिष्ट छवि रही है।
निष्कर्ष
उपरोक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि लोक प्रशासन राजनीति की एक व्यवहारिक शाखा हैं। इसमें राज्य के प्रशासनिक या शासन के उस भाग का जो नीतियों के क्रियान्वयन से किसी न किसी प्रकार से जुड़े हुए हैं, का ढाँचा और उनकी कार्य प्रणाली, संगठन इत्यादि का गहन अध्ययन किया जाता है। यह कार्य कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका के स्थानीय प्रान्तीय और राष्ट्रीय स्तर पर कहीं भी हो सकता हैं। आज के युग में इसका अध्ययन अनेकों कारणों से अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गया हैं।